कबीर जयंती नहीं कबीर प्रकट दिवस
कबीर साहेब जयंती बनाम कबीर प्रकट दिवस
कबीर साहेब जी ने अपनी वाणी में स्पष्ट किया है कि उनका जन्म नहीं होता :-
ना मेरा जन्म ना गर्भ बसेरा, बालक बंद कराया ।
काशीनगर जल कमल पर डेरा, जहां जुलाई ने पाया ।।
मात-पिता मेरे कुछ नाही, ना मेरे घर दासी ।
दुल्हे का सुत आन कहाया, जगत करें मेरी हंसी ।।
उन अवतारों की जयंती मनाई जाती है जो माता से जन्म लेते हैं और जो स्वयं प्रकट होते हैं, उनका प्रकट दिवस मनाया जाता है।
परमात्मा कबीर जी चारों युगों में एक शिशु के रूप में प्रकट होते हैं। कलियुग में, वह सन् 1398 में काशी के लाहारातारा तालाब में एक बच्चे के रूप में दिखाई दिए, जिसके ऋषि अष्टानंदजी साक्षी बना। इसलिए कबीर साहेब का प्रकट दिवस मनाया जाता है।
कबीर, ना मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक बन दखलाया।
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